Shia and Sunni : शिया और सुन्नी कौन है ? शिया और सुन्नी में क्या अंतर है ?

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Who are Shia and Sunni? What is the difference between Shia and Sunni? –

इस्लाम (islam) में धर्म से संबंधित हर प्रथा को पूरे विधि विधान के साथ संपन्न किया जाता है। लोगों का उनके धर्म के प्रति समर्पण सराहनीय है। इस्लाम में दो समुदाय सबसे अधिक चर्चा में रहते हैं जिनके नाम हैं शिया और सुन्नी (shia and sunni) और दोनों के विवादों की खबरें भी अक्सर चर्चा में रहती हैं। दोनों ही समुदाय एक ही धर्म का पालन करते हैं और अपने धर्म के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं। फिर भी दोनों समुदायों के बीच इतना मतभेद है कि एक दूसरे को एक आँख भी नहीं भाते।

तो आइए इस आर्टिकल में हम जानते हैं कि शिया और सुन्नी कौन है ? शिया और सुन्नी दोनों में क्या अंतर है ? और शिया और सुन्नी समुदायों के बीच मतभेद का क्या कारण है ?

इन दो समुदायों का मतभेद केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं सीमित है बल्कि पूरी दुनिया के शिया और सुन्नी मुसलमान (muslim) एक दूसरे के विरोधी हैं। दरअसल यह विवाद तब शुरू हुआ जब पैगम्बर मुहम्मद इस दुनिया से रुखसत हुए। अब मुद्दा यह था कि इस्लाम का प्रमुख नेता किसे बनाया जाए। इस्लाम धर्म के कुछ लोग पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) के चचेरे भाई अली को प्रमुख बनाना चाहते थे। अली पैगंबर मुहम्मद के दामाद भी थे। यह हजरत अली के नाम से जाने जाते थे।

वहीं इस्लाम के कुछ लोग अबूबकर को प्रमुख बनाना चाहते थे तो जो समुदाय अली को प्रमुख बनाने के समर्थन में था उसे शिया कहा गया। जबकि अबूबकर के समर्थकों को सुन्नी कहा गया। शिया मुसलमानों के अनुसार पैगंबर मोहम्मद साहब ने हजरत अली (हजरत अली ) को इस्लाम का वारिस बनाया था जबकि सुन्नियों का कहना था कि असली वारिस हजरत अली नहीं बल्कि अबूबकर को होना चाहिए। और फिर अबूबकर (Abubakar) को खलीफा बना दिया गया। इसके बाद उमर और उस्मान को खलीफा बनाया गया और चौथे नंबर पर हजरत अली को खलीफा घोषित किया गया।

शिया मुस्लिम अपने खलीफा की गिनती हजरत अली से ही करते हैं और अपने प्रमुख नेता को खलीफा की जगह इमाम का नाम देते हैं जबकि सुन्नी मुस्लिम अली को चौथे खलीफा की उपाधि देते हैं। मुहम्मद के समय में पूरी दुनिया के मुसलमानों का मत एक था और एक बड़ा साम्राज्य स्थापित हुआ। पैगंबर के बाद इस विशाल साम्राज्य का खलीफा बनने की होड़ लगी हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप मुस्लिम संप्रदाय दो भागों में विभाजित हुआ और शिया और सुन्नी (Shia and Sunni) गुटों का संगठन हुआ जिसका कारण हजरत अली को प्रमुख नेता बनाना या न बनाना था।

सुन्नियों का मानना है कि ये लोग इस्लाम का अनुसरण पारंपरिक तौर पर करते हैं। दरअसल परंपरा को मानने वाले लोगों को अहल अल सुन्ना कहा जाता है और सुन्नी शब्द भी यहीं से आया है। सुन्नी मुसलमान कुरान में उल्लेखनीय सभी पैगंबरों को महत्व देते हैं। उनका मानना है कि अंतिम पैगंबर मुहम्मद ही थे और पैगंबर के बाद के सभी प्रमुख नेताओं या खलीफाओं को पैगंबर नहीं बल्कि इस संसार की कुछ खास शख्सियतों के रूप में देखा जाता है।

वहीं शुरुआत में शिया (Shia) अली नाम का एक राजनीतिक समूह था जिसका अर्थ है अली का दल और यहां से शिया शब्द आता है। पूरे विश्व में सुन्नियों (Sunni) की संख्या शियाओं से बहुत ज्यादा है। हालांकि ईरान इराक बहरीन और कुछ और देशों के लोग शिया समुदाय के हैं। भारत, लेबनान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कुवैत, कतर, तुर्की, यूएई और सऊदी अरब में भी शियाओं की अच्छी खासी संख्या है। हजरत अली के बेटे हुसैन (hussain) थे जिनका कत्ल यजीद ने किया था और खुद को खलीफा घोषित कर दिया था। यजीद का बहुत बड़ी संख्या में मुसलमानों ने विरोध किया। यजीद बहुत खूंखार था और गैर इस्लामिक (islam) काम किया करता था।

वह चाहता था कि हुसैन उसके साथ हो जाए जिससे उसे एक बड़ी पहचान मिलेगी और इस्लाम पर वह अपना अधिकार कर लेगा। यजीद के अत्याचारों को देखकर कोई और इराक के लोगों ने हुसैन को खत लिखकर को आने के लिए कहा जिससे उन्हें खलीफा बनाया जा सके। यजीद ने बहुत से पैगाम हुसैन को भेजे कि वह उसके साथ हो जाएं। हुसैन ने यजीद को इनकार कर दिया तब यजीद ने हुसैन के खिलाफ एक योजना बनाई। छह सौ अस्सी ईस्वी में हुसैन ने मदीने में स्थित अपना घर छोड़ा और हज यात्रा पर जाने के इरादे से मक्का की ओर रवाना हुए। वहीं उन्हें पता लगा कि यजीद की सेना हाजियों के भेष में आकर उनका कत्ल करने की योजना बना रही है।

काबा (Kaaba) को एक पवित्र स्थान माना जाता है और हुसैन इस स्थान पर खून नहीं बहने देना चाहते थे इसलिए हज यात्रा की जगह वह रास्ता बदलकर गुफा की ओर चल दिए। लेकिन यजीद की सेना ने उन्हें घेर लिया और बचते बचाते इमाम हुसैन कर्बला (karbala) पहुंचे। वहां उन्हें इतना कड़ा पाया गया कि उनकी सेना को पानी देने पर भी रोक लगा दी गई। यजीद के खौफ से इराक और गोवा के लोगों ने भी हुसैन साहब का साथ छोड़ दिया और यहीं पर उनका कत्ल कर दिया गया। यजीद ने हुसैन के साथियों और परिवार पर बहुत यातनाएं कीं और लगभग सभी का कत्ल कर दिया। कर्बला की लड़ाई मुस्लिम इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है। हुसैन की हत्या कर्बला में मुहर्रम महीने की दस तारीख को हुई थी इसलिए शिया मुस्लिम इस दिन हुसैन की शहादत के शोक में ताजिये निकालते हैं और खुद को खंजर से जख्मी कर लेते हैं।

शिया और सुन्नी (shia and sunni) हुसैन की हत्या (hussain murder) का आरोप एक दूसरे पर लगाते हैं। उनके बीच मतभेद का एक यह भी बड़ा कारण है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालिबान और अन्य आतंकी संगठन शियाओं के धार्मिक स्थलों को निशाने पर रखते आए हैं जिससे हिंसा और तेजी से भड़कती है। वर्तमान में सीरिया और इराक के बीच संघर्ष के कारण भी शियाओं और सुन्नियों के बीच घृणित भावनाएं हैं। इन देशों में सुन्नी समुदाय के युवा विद्रोह करने वाले गुटों में शामिल होते रहे हैं। वहीं दूसरी ओर शिया सरकारी पक्ष की ओर से विद्रोही गुटों के विरुद्ध लड़ते आए हैं और दर्शकों यहीं पर समाप्त होती है। यह कड़ी इस जानकारी का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं अपितु अब तक के इतिहास में उल्लेखनीय तथ्यों को आप तक पहुंचाना है।

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