जानिए श्राद्ध क्या होता है? श्राद्ध क्यों मनाया जाता है? श्राद्ध कैसे मनाया जाता है?

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What is Shradh – हिन्दू धर्म में तीन प्रकार के ऋणों को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है जो हैं देव ऋण ऋषियों का ऋण और पितृ ऋण। इनमें पितृ ऋण का महत्व सबसे अधिक है। पितृपक्ष, पितरों का उद्धार करने के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है जो आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक मनाया जाता है। 16 दिनों तक चलने वाला पितृपक्ष पूर्वजों के आत्माओं की शांति का त्योहार है। इस समय पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं।

क्यों किए जाते हैं पितृपक्ष श्राद्ध?

पितृ पक्ष में श्राद्ध पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है। हमारे धर्मग्रंथों में बताया गया है कि अंतिम संस्कार उन 16 संस्कारों में सबसे अंतिम है जो सनातन धर्म में मुख्य हैं। ऐसा माना गया है कि मनुष्य जैसे कर्म धरती पर करता है, उसे वैसा ही लोक प्राप्त होता है। जैसे जो व्यक्ति धर्म, कर्म और अच्छे काम करता है उसे स्वर्ग मिलता है, किंतु जो व्यक्ति बुरे काम करता है उन्हें नर्क प्राप्त होता है।

सनातन धर्म के अनुसार जब व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है तो उसे पितरों से मिलाया जाता है और उसके बाद वह पितृलोक में रहता है। उसे उस लोक में तब तक रहना पड़ता है जब तक उसे गति नहीं मिलती।

यह भी माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान सभी पितृ अपने पुत्रों के पास आते हैं, ताकि उन्हें तर्पण मिले और जो उन्हें संतुष्ट कर लेता है उसे पितृ आशीर्वाद देते हैं जबकि जिनसे उन्हें कुछ नहीं मिलता वह क्रोधित और दुखी होकर उन्हें शाप भी देते हैं।

पितृपक्ष की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार एक नगर में जोगे तथा भोगे नाम के दो भाई रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन, इसके बाद भी दोनों भाइयों में अथाह प्रेम था। किन्तु दोनों के पत्नियों में मतभेद था।  जहां जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था वहीं भोगे की पत्नी सरल हृदय की थी। एक बार धनी जोगे की पत्नी ने जोगे से पितृपक्ष में पितरों को श्राद्ध देने के लिए कहा। वह चाहती थी कि इस मौके पर वह अपने मायके वालों को बुला कर उन्हें अपनी समृद्धि दिखाए। जोगे पत्नी की बात मान कर श्राद्ध तर्पण के लिए तैयार हो गया।

कुछ दिनों बाद जोगे की पत्नी ने अपनी देवरानी भोगे की पत्नी को भी श्राद्ध तर्पण में सहायता के लिए बुलाया। उसकी पत्नी ने श्रद्धा पूर्वक सारे कार्य कर लिए और अपने घर में केवल पितरों को भोग चढ़ाकर पूरा दिन भूखी ही रहीं। दोपहर के समय जब पितृ धरती पर आए तो सबसे पहले वह जोगे के घर गए। उन्होंने वहां देखा कि जोगे की पत्नी के घर के सभी लोग भोजन कर रहे हैं। यह देख वह निराश होकर भोगे के घर की ओर चल दिए। वहां उन्होंने पितरों के लिए जल्दी अगियारी देखी तब पितृ उस अगियारी की राख चाट कर भूखे ही नदी पर वापस आ गए।

वहां अन्य पितृगण भी मौजूद थे जो अपने-अपने श्राद्धों की बड़ाई कर रहे थे। यह सुन कर उन्होंने भी सबको पूरी बात बताई। सबके साथ विमर्श के बाद उन्हें यह समझ आया कि अगर भोगे भी धनी होता तो उसके घर से उन्हें भूखा नहीं आना पड़ता, क्योंकि उसके घर में तो खाने के लिए भी कुछ नहीं था। यह जान कर सभी पितृ नाच-नाच कर कहने लगे भोगे के घर धन हो जाए भोगे के घर धन हो जाए।

इधर जब शाम हुई और भोगे के बच्चे मां से भोजन के लिए कहने लगे तब कुछ न होने के कारण भोगे की पत्नी ने बहाना बनाते हुए कहा कि बाहर मैंने एक होदी को उल्टा करके रखा है, उसके नीचे जो भी मिले उसे मिल बांटकर खा लेना। मां की बात को सच मानकर बच्चे उस हौदी के पास गए और उसे खोलकर देखा उसे देखते ही बच्चे जोर-जोर से चिल्लाने लगे। उनकी आवाज सुन कर भोगे की पत्नी बाहर आई, तब बच्चे दौड़कर मां के पास आए और उन्होंने उस हौदी को दिखाया। हौदी सोने के मोहरों से भरी पड़ी थी।

यह देख कर उसने भोगे को बताया और सबने पितरों को धन्यवाद दिया। धन पाकर भी वह घमंडी नहीं हुई। जब अगले वर्ष फिर से पितृपक्ष आया तब उसने पितरों को छप्पन भोग अर्पित किए और जेठ-जेठानी को सोने चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। मान सत्कार देख कर पितृ प्रसन्न हुए और भोगे को सदा संपन्न रहने का आशीर्वाद देकर वापस पितृलोक चले गए।

कैसे करें श्राद्ध

सुबह स्नान आदि करके दक्षिण-दिशा में बैठ कर अपने पितरों को तिलांजलि अर्पण करें। कई जगह पितरों को चावल, तेल और घी का पिण्ड बनाकर और जल अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु व यमराज की भी पूजा की जाती है। अपने पितरों को याद करके उनसे अपने कल्याण और आशीर्वाद की भी कामना की जाती है।

इस दिन कई तरह के पकवान बनाकर पितरों के अलावा ब्राह्मणों को भी खिलाया जाता ,है जैसे- खीर पूड़ी आदि और साथ ही ब्राह्मणों को दक्षिणा भी दी जाती है। एक थाली में पकवानों को कोएं को खास तौर पर खिलाया जाता है क्योकि यह माना जाता है कि उस दिन पितरों कोएं रुप में आते हैं। इसके साथ ही कुत्ते, गौमाता आदि को भी खिलाया जाता है।

किस दिन किया जाता है श्राद्ध

श्राद्ध का अर्थ है अपने मित्र-परिजनों को याद करना और उन्हें तृप्त करने का प्रयास करना। यह जानना बेहद जरुरी है कि श्राद्ध किस प्रकार करना चाहिए क्योंकि पिता माता ऋषियों आदि का श्राद्ध अलग अलग दिन होता है। जैसे पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन किया जाता है, माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।

अगर किसी के घर में अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे किसी की दुर्घटना में मौत हुई हो तो उनका श्राद्ध शरद चतुर्दशी के दिन किया जाता है। महान आत्माओं या ऋषि मुनियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है। अगर आपको किसी परिजन की मृत्यु की तिथि याद नहीं है या वो आपके परिवार का कोई अन्य सदस्य हो या आपका रिश्तेदार नहीं पर जानने वाला हो तो उसका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है

श्राद्ध के दिन क्या करें और क्या ना करें?

ऐसा कहा जाता है कि हमारे पितृ अपने श्राद्ध वाले दिन हमारे दरवाजे पर किसी भी रूप में आ सकते हैं। इसलिए अगर इन दिनों आपके घर कोई भी जीव या मनुष्य आता है तो उसे ऐसे ही न जाने दें उसे भोजन और जल दें। इन दिनों पशु-पक्षियों को भी खाने को दें। इन दिनों कुछ चीजों का सेवन करना निषेध माना गया है- जैसे मसूर की दाल, प्याज, लहसुन, मूली आदि।

इसके अलावा इस समय मांस, मछली और शराब का सेवन भी नहीं करना चाहिए। इन दिनों ब्राह्मण को भोजन कराने का विशेष महत्व है और साथ ही उन्हें दक्षिणा भी देनी चाहिए। इसके साथ ही आप जरूरतमंदों को भी भोजन कराएं। इन दिनों क्रोध, काम, लोभ, तृष्णा, लालच आदि के विचार अपने मन में न आने दें। घर में जो भी आए उसका सत्कार करें और उन्हें प्यार से भोजन कराएं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष के समय प्रयाग, गया या बद्रीनाथ में श्राद्ध या पिण्डदान किया जाए तो पितरों को मुक्ति मिलती है, किंतु अगर वहां न जा पाएं तो अपने घर पर भी इसे कर सकते हैं।

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