नमस्कार दोस्तो। आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए पितृपक्ष की एक बेहद सुंदर कहानी लेकर आए हैं। एक समय की बात है दो भाई-बहन थे। दोनों का विवाह हो चुका था और दोनों के दो-दो बेटे थे। बहन विधवा हो चुकी थी और अपने भाई के घर में रहती थी। इस बात से उसकी भाभी बहुत नाराज रहती थी। ऐसे ही पितृपक्ष आया तो भाई बोला मैं पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए गंगा जी जा रहा हूं। ऐसा कहकर वो गंगा जी के लिए चला गया।
भाई के जाते ही भाभी ने बाहर खेत में ननद और उसके बच्चों के लिए झोपड़ी डलवा दी। अपने बच्चों के साथ वह झोपड़ी में रहने लगी। सुबह शाम भाई के घर जाकर घर का सारा काम कर आती थी। बदले में भाभी बचा खुचा उसे खाने को दे देती थी। जब भी वह भाभी के घर से आती तो आटा छानने वाला कपड़ा अपने साथ ले आती थी। घर आकर उस आटे में सने कपड़े को पानी में घोल कर चूल्हे पर चढ़ाकर पकाकर बच्चों को देती और कहतीं खीर है खा लो।
ऐसे ही समय बीतने लगा एक बार भाभी ने उसे एक कपड़ा ले जाते देख लिया तो बोली बाई जी आटा छानने का कपड़ा कहां ले जा रही हो। इसे यहीं छोड़कर जाया करो। उसने वैसा ही किया, उस दिन भाभी ने उसे बचा खुचा भोजन भी नहीं दिया और बोली कल आपकी मां का श्राद्ध है बिना बुलाए तो आना मत। हां आँगन में लगा ये पीपल का पेड़ अगर अपनी जगह से हिले तो आ जाना। ये सुनकर वो बेहद दुखी हुई और रोती रोती अपने घर चली गई। घर पहुंची तो बच्चे बोले मां भूख लगी है कुछ खाने को दो। वह बच्चों को बोलीं बेटा आज हम सब का उपवास है भूखे की सो जाओ।
अगले ही दिन बच्चे बोले मामी ने कहा था कि आज नानी का श्राद्ध है तो चलो वहां चलते हैं। तो वह बोलीं बेटा मामी ने कहा था कि आँगन का पीपल का पेड़ अगर अपनी जगह से हिले तो आ जाना। तुम बताओ कभी पेड़ हिलता है? पत्ते हिलते हैं, टहनियां हिलती है, कभी पेड़ को हिलते देखा है? उसने बच्चों को समझाया कि बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए।
शाम हुई तो उसके भतीजे आए और बोले बुआ मां ने भोजन भेजा है। उसने देखा तो भोजन के नाम पर दो सूखी रोटियों के ऊपर थोड़े से चावल रखे थे। यह देख कर उसे बहुत क्रोध आया और अपने बच्चों से बोली। इसे झोपड़ी के ऊपर फेंक दो और वह भूखे ही अपने बच्चों को लेकर सो गईं। सारी रात गंगा मां को याद करती रहीं और बोलीं हे! मां गंगा मेरे भाई की रक्षा करना वो हमारी रक्षा करेगा।
अगले दिन भाभी आई और बोली बाई जी कल तुम्हारे पिता का श्राद्ध है बिना बुलाए आना मत लेकिन आँगन का पीपल का पेड़ हिले तो आ जाना। अगले दिन भी वे भाभी के घर भोजन के लिए नहीं गईं। शाम को फिर उसके भतीजे आए और दो सूखी रोटियां चावल के साथ दे गए। उसने फिर वह रोटी और चावल झोपड़ी के ऊपर फिकवा दिए और भूखे ही बच्चों को लेकर सो गई और सारी रात रोती रही मां गंगा से प्रार्थना करती रहीं।
इसी तरह पितृपक्ष के 16 दिन बीत गए और उसका भाई वापस आया तो उसने देखा उसके घर के आँगन में कीचड़ ही कीचड़ भरा है। वो अपनी पत्नी से पूछने लगा ये कैसा कीचड़ है? मेरी बहन और भांजे कहां है? तो उसकी पत्नी बोली श्राद्ध के पूरे सोलह दिनों तक मैंने तुम्हारी बहन और भांजों के पैर कच्चे दूध से धोए हैं इसलिए यहां कीचड़ हो रहा है। तुम्हारे पीछे से मैंने उनकी खूब सेवा करी। खीर पूड़ी खिलाई, फिर भी वो मुझसे नाराज होकर खेत में झोपड़ी डालकर रह रही है।
भाई खेत पर पहुंचा तो वह देखता है कि वहां कोई झोपड़ी नहीं थी। वहां एक आलीशान महल बना हुआ था, जिसके आंगन में उसके भतीजे खेल रहे थे। उसने जाकर अपनी बहन से कहा बहन ये सब क्या है? तब उसने अपने भाई को सारी बात बताई और बोली भाई जो तेरे आँगन में कीचड़ है, वो कच्चे दूध से नहीं बल्कि भाभी के व्यवहार से जो मैं दिन रात रोती थी उन आसुओं का कीचड़ है। माता-पिता के श्राद्ध पर भाभी ने कहा पीपल का पेड़ हिले तो आ जाना। बिना बुलाए मत आना। पीपल का पेड़ हिला नहीं तो हम गए नहीं और शाम को उन्होंने दो रोटी और चावल भिजवाए, जिससे गुस्से में मैंने झोपड़ी के ऊपर फेंक दिया। माता पिता के आशीर्वाद तेरे साथ और गंगा मइया की कृपा से ये सूखी रोटियां सोने में और चावल हीरे-मोतियों में बदल गई। जिसके प्रभाव से ये सब हुआ है।
भाई ने अपनी बहन से अपनी पत्नी की गलती की माफी मांगी और घर चलने को कहा। तब बहन बोली भाई गंगा मईया ने तेरी रक्षा करी तू हमारी रक्षा करेगा लेकिन अब हम यहीं रहेंगे। ये सुनकर भाई ने अपने माता-पिता को याद किया और बोला मेरे पितरों जैसे मेरी बहन और भांजों की रक्षा करीम, उनके दुख काटें, वैसे सबके काटना, सबकी रक्षा करना। कहानी को कहने वाले, सुनने वाले और हुंकार भरने वाले सब पर कृपा करना।