2300 सैनिक और 61 लाख करोड़ गंवाने के बाद भी हार गया अमेरिका, जानिए तालिबान की पूरी कहानी

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आख़िरकार तालिबान ने अफगानिस्तान पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया है. अफगानिस्तान (Afghanistan) के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) ने तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद देश छोड़ दिया है. दूसरी तरफ अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना धीरे-धीरे वापसी कर रही है. अपने 20 साल सैनिक कारवाई से अमेरिका भी पस्त हो गई है. इन 20 सालों में अमेरिका ने अपने साथी देशों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में कई कारवाई की कई कोशिशें की कि तालिबान को ख़त्म कर दिया जाए. अपने कई सैनिकों की जान गवाई. लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया. आज फिर से तालिबान की गूंज अफगानिस्तान में सुनाई दे रही है. आज भारत को भी करोड़ों रुपए का अपना नुकसान होता नजर आ रहा है. ऐसे में जानते हैं कि तालिबान क्या है? (What is Taliban), तालिबान का जन्म कैसे हुआ? (How was Taliban born), तालिबान का इतिहास (History of Taliban) क्या है? तो चलिए शुरू करते हैं.

दोस्तों 1950 से 1990 के दशक के बीच दुनिया में दो बड़ी शक्तियां थी- एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ. इस दौरान इन दोनों देशों में शीत युद्ध चल रहा था. उस वक्त चीन कहीं भी टक्कर में नहीं था. दोनों देश अमेरिका और सोवियत संघ एक दूसरे के काम में टांग अड़ाने में लगे रहते थे और दोनों देश वैचारिक और भौगोलिक स्तर पर अपना विस्तार करने में लगे थे. इसी विस्तार योजना में 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया. जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ का प्रभुत्व होने लगा तो यह अमेरिका से बर्दाश्त नहीं हुआ.

इसी दौरान अफगान मुजाहिदीन का गठन हुआ जिसका एकमात्र लक्ष्य था सोवियत सेना, जिन्होंने इनके अपने देश में कब्जा करके रखा हुआ है. इनको कैसे देश से बाहर खदेड़ा जाए. अफगान मुजाहिदीन अपने वतन को आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहे थे. उनकी लड़ाई आधुनिक हथियारों से लैस सोवियत सेनाओं से थी. कहते हैं ना दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बना लो, तो ऐसे में मुजाहिदीनों का साथ दिया उसी अमेरिका ने जो आज तालिबान से लड़ रहा है. अमेरिका ने उसे उस वक्त पाकिस्तान के साथ मिलकर इन मुजाहिदीनों को महंगे से महंगे हथियार और खूब आर्थिक मदद भी पहुंचने लगा. इस युद्ध में सोवियत संघ को भारी नुकसान हुआ. 10 साल के अंदर की इस लड़ाई में सोवियत सेना ने अपने 15 हजार सैनिक खो दिए. इस कारण सोवियत संघ को मजबूरन अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा. फिर मुजाहिदीनों ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.

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1994 में इसी मुजाहिदीनों से तालिबान की नींव पड़ी. तालिबान का मतलब है स्टूडेंट. 1994 में तालिबान एक शक्तिशाली आन्दोलन बन गया. अफगानिस्तान में तालिबान ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसी. अपने प्रभुत्व वाले इलाके को व्यवस्थित किया और सुरक्षित किया, ताकि लोग व्यवसाय कर सके. अफगानिस्तान में तालिबान को उस वक्त पसंद किया जाने लगा. इसके बाद तालिबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटा कर अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया. 1998 आते आते लगभग 90 फीसदी अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया. अफगानिस्तान में तालिबान ने शरिया कानून लागू कर दिया.

दुनिया का ध्यान तालिबान की ओर तब गया जब न्यूयार्क में 2001 में हमला हुआ. अलकायदा नामक संगठन पर न्यूयार्क हमले का दोष लगा. अलकायदा जिसका सरगना ओसामा बिन लादेन था. अमेरिका ने अफगानिस्तान पर यह आरोप लगाया कि उसने अलकायदा को पनाह दी है. 7 अक्टूबर 2001 को अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और कुछ समय बाद ही तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता से बेदखल कर दिया. हालांकि अमेरिका को ओसामा बिन लादेन बाद में पाकिस्तान में मिला जहां उन्हें मार दिया गया.

अब लगभग 20 साल बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों की सेना का अफगानिस्तान से वापसी हो रही है. इन 20 सालों में अमेरिका ने अफगानिस्तान में 61 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए और उसके 2300 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक मारे गए, लेकिन इसके बाद भी वह अफगानिस्तान में तालिबान को खत्म नहीं कर सका. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि 11 सितंबर 2021 तक अमेरिकी सेना की पूरी तरह वापसी हो जाएगी. इस बीच फिर से तालिबान ने अफगानिस्तान पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया है. तालिबान ने दावा किया है कि अफगानिस्तान का लगभग 85 फीसदी क्षेत्र अब तालिबान के कब्जे में है. तालिबान ने कहा है कि अगर वह चाहे तो दो हफ्तों में अफगानिस्तान पर पूरी तरह नियंत्रण कर सकते हैं. उन्होंने दावा किया है कि अब देश की अधिकांश सीमाओं पर तालिबान का कब्जा है चाहे वह ईरान, तुर्कमेनिस्तान की सीमा हो या चीन या पाकिस्तान से लगी सीमा हो.

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इस बीच भारत की चिंताएं बढ़ गई है. भारत की तालिबान से राजनयिक बातचीत सिर्फ एक बार तब हुई थी जब भारत का विमान आतंकवादियों ने कब्जा करके कांधार में उतारा था. उस वक्त कांधार तालिबान के नियंत्रण में था और तालिबान ने आतंकवादियों से मध्यस्थता करके विमान को छुड़ाने में मदद की थी. भारत ने अपने राजनयिकों और सुरक्षाकर्मियों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया हैं. कंधार के दूतावास से भारतियों की वापसी हो गई है. भारत ने अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी में अफगानिस्तान में कई परियोजनाओं में निवेश किया है. तालिबान के प्रभुत्व को बढ़ते देखकर भारत को इन परियोजनाओं की चिंता हो रही है.

बदलते परिवेश के कारण पाकिस्तान और चीन भी इन इलाकों में अपनी दिलचस्पी दिखाने लगी है. जैसा मैंने कहा था कि दुश्मन के दुश्मन में जल्दी दोस्ती हो जाती है. कहीं चीन इस मौके का फायदा न उठा ले? कहीं वह अफगानिस्तान का आर्थिक मदद करके इन इलाकों में अपना प्रभुत्व न कायम कर ले?

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इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जमीर उल्ला मुजाहिदीन ने कहा है कि तालिबान ने एक पवित्र जिहाद छेड़ा हुआ है. तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे पास दो रास्ते हैं. बेशक बातचीत हमारी प्राथमिकता है. हम बातचीत से मसले को सुलझाना चाहते हैं लेकिन अगर जरूरत पड़ी और अगर हमारे सामने चुनौतियां आई, अगर हमें मुसीबतों का सामना करना पड़ा तो हम दूसरा रास्ता चुनने से भी परहेज नहीं करेंगे जो युद्ध का रास्ता है. हम शरीयत के अनुसार अपना फैसला करेंगे. अब तालिबान कई देशों के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है. इस बीच तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने पाकिस्तान से दो टूक कहा है कि पाकिस्तान हमारे किसी संगठन पर तानाशाही नहीं चला सकता. वहीं शाहीन ने भारत से यह भी अपील की है कि वह तालिबान के मामले में निष्पक्ष रहे.

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