फकीर की दुआ से सुरों के सम्राट बने मोहम्‍मद रफी

mohammad rafi biography

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दोस्तों सुरों के सम्राट और हजारों गीतों को अपनी मधुर आवाज देने वाले मोहम्मद रफी साहब को कौन नहीं जानता। उनकी आवाज में जादू ही कुछ ऐसा था कि इस दुनिया से जाने के कई दशकों बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई बल्कि फैन फॉलोविंग हमेशा से ही बढ़ती चली गई। दोस्तों रफी साहब वह सिंगर हैं जिन्होंने साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में बहुत सारे ऐक्टर्स को अपनी आवाज देकर और भी लोकप्रिय बनाया है। तो चलिए इस आर्टिकल में हम भारत के सबसे महान गायकों की गिनती में गिने जाने वाले मोहम्मद रफी की पूरी कहानी जानते हैं कि किस तरह से एक मिडिल क्लास मुस्लिम परिवार में पैदा होने वाला यह बच्चा बना करोड़ों दिलों की आवाज।

दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है 24 दिसंबर 1924 से, जब पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह ब्रिटिश इंडिया में मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद था और रफी अपने कुल छह भाइयों में दूसरे सबसे बड़े थे। दोस्तों सुरों की समझ तो मानों रफी साहब के अंदर बचपन से आ गई थी, क्योंकि जब वह करीब दो साल के थे तब उन्होंने अपने दरवाजे पर गाते हुए फकीर बाबा के आवाज की नकल उतारना शुरू कर दी थी। कहा जाता है कि सात साल की उम्र में उनके घर पर आने वाले फकीरों के साथ वह भी गाने के लिए निकल जाया करते थे। तभी फकीरों ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि रफी बड़े होकर जरूर ही एक सफल गायक बनेंगे और शायद यही दुआ आगे चलकर रफी साहब के काम भी आ गई। इसी तरह से आगे चलकर 1935 आते-आते रफी साहब के पिताजी लाहौर चले गए और यहीं से मोहम्मद रफी ने क्लासिकल म्यूजिक सीखना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने उस्ताद अब्दुल मजीद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी जैसे संगीतकारों से संगीत सीखा और फिर 13 साल की उम्र में पहली बार स्टेज पर उन्होंने परफॉर्मेंस भी दी।

1941 में रफी साहब ने पहली बार एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच में प्लेबैक सिंगर काम करना शुरू किया और फिर इसी साल ऑल इंडिया रेडियो लाहौर स्टेशन से उन्हें गाना गाने का भी बुलावा आया। हालांकि गायकी में अपना करियर बनाने के लिए 1944 ने मोहम्मद रफी बाम्बे शिफ्ट हो गए और यहां आकर उन्होंने भिंडी बाजार नाम के एरिया में एक छोटा सा कमरा किराये पर लिया। फिर मुम्बई के अंदर तनवीर नकवी नाम के कंपोजर ने मोहम्मद रफी को अब्दुल राशिद कारदार और महबूब खान जैसे फिल्म प्रड्यूसर से मिलवाया। यहां से तो मानो रफी की जिंदगी बदल नहीं वाली थी क्योंकि उन्होंने एक बार मौका मिलने के बाद से अपनी सिंगिंग की ऐसी छाप छोड़ी कि लोग देखते ही देखते उनकी आवाज के दीवाने हो गए। मुंबई में अगर देखा जाए तो पहली बार उनका गाना जीएम दुर्रानी के साथ आया था जो कि गांव की गोरी फिल्म के लिए था। एक तरह से यही से 1945 में मोहम्मद रफी का हिंदी फिल्मों में बतौर सिंगर डेब्यू हुआ और फिर 1945 में ही मजनू फिल्म के लिए गाए हुए गाने तेरा जलवा जिसने देखा में पहली बार वह स्क्रीन पर भी दिखाई दिए।

हालांकि 1947 में भारत के आजाद होने के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच पार्टिशन की बारी आई तब रफी साहब ने भारत में ही जाने का फैसला किया और फिर इसी तरह से ही साल दर साल बीतते गए और रफी साहब ने अपनी आवाज का जादू कुछ यूं छोड़ा कि लोग उन्हें सुरों का सम्राट कहकर बुलाने लगे। अपने पूरे जीवन में उन्होंने नौशाद अली, गोपी नायर, शंकर जयकिशन, एसडी बर्मन, कल्याणजी आनंद, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और रोशन जैसे ही कई सारे फेमस म्यूजिक डायरेक्टर्स के साथ भी काम किया है। दोस्तों इन म्यूजिक डायरेक्टर्स में से नौशाद अली ने मोहम्मद रफी को आगे बढ़ने में खूब मदद की थी और यही वजह है कि सिर्फ उन्हीं के लिए ही रफी साहब ने 149 गाने गाए थे। दोस्तों इसी बीच 1960 में चौदहवीं का चांद फिल्म के टाइटल सांग के लिए मोहम्मद रफी को फिल्मफेयर का अपना पहला अवार्ड मिला और इसी साल नीलकमल फिल्म का गाना बाबुल की दुआएं लेती जाना ने उन्हें नेशनल एवार्ड का भी विनर बनवाएगा। हालांकि सत्तर के दशक में गले के इन्फेक्शन की वजह से उनके गाने बहुत ही कम हो गए थे लेकिन कुछ सालों में उन्होंने अपने आपको फिर से तैयार कर लिया और फिर इसके बाद एक बार फिर उन्होंने संगीत की दुनिया पर राज किया।

दोस्तो अगर हम बात करें मोहम्मद रफी के पर्सनल लाइफ की तो उन्होंने सबसे पहले बशीर बीबी नाम की लड़की से शादी की, लेकिन विभाजन के समय उनकी वाइफ ने भारत में रहने से इनकार कर दिया और इसी वजह से रफी साहब का यह रिश्ता टूट गया। इसके बाद बिलकिस बानो से उन्होंने दूसरी शादी की। हालांकि 31 जुलाई 1980 को महज 55 साल की उम्र में ही मोहम्मद रफी ने अपनी आखिरी सांसें ली, क्योंकि हार्टअटैक की वजह से वह हमसे बहुत ही दूर जा चुके थे। हालांकि भले ही आज से कई दशक पहले ही सुरों के सम्राट ने दुनिया को अलविदा कह दिया था लेकिन उनके गाने लोगों की जुबां पर अब भी छाए रहते हैं। उम्मीद करते हैं कि मोहम्मद रफी साहब की यह कहानी आपको जरूर ही पसंद आई होगी। आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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