जानिए Semiconductor Chips के मामले में क्यों पिछड़ रहा है भारत

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Semiconductor Chips – दोस्तो दुनिया में जैसे-जैसे Technology तरक्की कर रही है, वैसे ही वैसे हमारे इस्तमाल में आने वाली हरेक चीज भी स्मार्ट होती जा रही है और इन चीजों को ही स्मार्ट बनाने के पीछे सबसे अहम कंपोनेंट है Semiconductor Chips. दरअसल आज के समय में Semiconductor Chips का इस्तमाल कंप्यूटर और स्मार्ट फोन्स में ही नहीं बल्कि कार, टीवी, वाशिंग मशीन, फ्रीज और यहां तक की एलईडी बल्ब जैसी मामूली सी चीज़ों को भी बनाने में किया जा रहा है और यही वजह है कि आज इस industry की वैल्यू करीब 600 billion डॉलर के आंकड़े को भी पार कर चुकी है. लेकिन ये बड़ी हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी मार्केट होने के बावजूद भी हमारा भारत इस industry में आज तक एंटर नहीं कर पाया है और शुरूआत से ही अमेरिका, चीन, साउथ कोरिया व ताइवान जैसे कुछ गिने चुने देश इस industry को पूरी तरह से डोमिनेट कर रहे हैं. तो आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि Technology के फील्ड में हमेशा आगे नज़र आने वाला हमारा भारत आखिर खुद के Semiconductor Chips क्यों नहीं बना पा रहा?

दोस्तों साल 2020 में जब कोरोना वायरस आया तो उसकी वजह से लगभग पूरी दुनिया में ही लॉकडाउन लगा दिया गया था और दुनिया की हर एक industry काफी लंबे समय के लिए बंद हो गई थी. अब इस लॉक डाउन का असर दूसरी इंड्रस्टी के साथ ही सेमीकंडक्टर industry पर भी पड़ा और उसी का नतीजा है कि आज पूरी दुनिया में Semiconductor Chips की शॉर्टेज देखने को मिल रही है. अब इस शॉर्टेज की वजह से सिर्फ स्मार्टफोन और कंप्यूटर ही नहीं बल्कि ऑटोमोबाइल और हेल्थकेयर इक्विपमेंट जैसी लगभग 170 industry को अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है. अकेले भारत की ही अगर बात की जाए तो साल 2020 में इंडिन सेमीकंडक्टर मार्केट की वैल्यू 1 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा थी जो कि अनुमान के अनुसार साल 2026 तक बढ़कर 5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगी और इन आकड़ों से साफ पता चलता है कि भारत में चिप्स की डिमांड काफी ज्यादा हाई है.

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अब यहां आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि भारत अपने लिए कोई भी Semiconductor Chips खुद से नहीं बनाता बल्कि वह 100% चिप्स ताइवान, सिंगापुर, हांगकांग, थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों से इम्पोर्ट करता है और फिलहाल दुनिया में जो चिप्स की शॉर्टेज चल रही है उसकी वजह से भारत में यह चर्चा काफी तेज हो गई है कि हमारे देश को Semiconductor Chips बनाने के मामले में भी अब आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए. लेकिन दोस्तों यह सब बोलने और सोचने में जितना सिंपल लगता है, असल में इसको इम्प्लीमेंट कर पाना उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है. दरअसल भारत के अबतक Semiconductor Chips न बना पाने के पीछे कोई एक नहीं बल्कि कई अल- अलग और बड़े कारण हैं. तो चलिए अब हम एक एक करके आपको सभी कारणों के बारे में बताते हैं.

Expensive – भारत के Semiconductor Chips न बना पाने के पीछे सबसे अहम रीजन यह है कि चिप्स का manufacturing plant सेटअप करना हद से ज्यादा महंगा होता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ एक बेसिक Chip manufacturing plant बनाने में ही कम से कम 8 से 10 billion dollars का खर्चा आता है और इसके बाद से plant के अंदर मशीनें लगाने में जो लाखों डॉलर खर्च होते हैं वो तो अलग ही हैं. वैसे आपके अंदाजे के लिए हम बता दें कि साल 2014 में सैमसंग ने साउथ कोरिया के अंदर एक नया Chip manufacturing प्लान बनाया था, जिसे सेटअप करने में उनके कुल 14.7 billion डॉलर खर्च हुए थे. अब आप में से काफी सारे लोग यह सोच रहे होंगे कि हमारे देश में तो अंबानी, अडानी, टाटा और बिड़ला जैसे न जाने कितने ऐसे बड़े-बड़े बिलेनियर मौजूद हैं जो कि इतना पैसा खर्च करके एक manufacturing प्लान बना सकते हैं और आपका ऐसा सोचना काफी हद तक सही भी है लेकिन जब manufacturing करने में दिक्कत यह है कि इसमें सिर्फ एक बार 15 से 20 billion dollars खर्च करके ही बात खत्म नहीं हो जाती बल्कि इसको चलाए रखने के लिए समय-समय पर इसमें लगातार पैसा इनवेस्ट करते रहना पड़ता है. जैसे – अगर कोई आयल रिफाइनरी सेटअप करता है तो फिर एक बार वह खर्चा करने के बाद सेम टेक्नॉलजी 50 साल तक काम करती रहती है लेकिन Chip manufacturing में ऐसा नहीं होता है क्योंकि इस फील्ड में टेक्नॉलजी बहुत ज्यादा तेजी से बदलती है. इसकी वजह से कंपनियों को अपना सेटअप लगातार अपडेट करते रहना पड़ता है. अब आपको जानकर हैरानी होगी कि इंटेल, सैमसंग और TSMC जैसी कंपनियां अपने Chip manufacturing plant में R&D, प्रोसेस इम्प्रूवमेंट और नई फैब्रिकेशन मशीनरी पर ही हर साल 20 से 25 billion डॉलर खर्च करती हैं और भारत में अभी तक कोई भी ऐसी कंपनी नहीं है जो कि एक नए बिजनस में एक दम से इतना सारा पैसा खर्च कर सके.

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Complex & Failure Rates – Chip Fabrication Technology इतनी ज्यादा कॉम्प्लेक्स है कि इसमें फेल होने के चांसेज काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं. आपको ये बात जानकर काफी हैरान रह जाएंगे कि आमतौर पर एक Chip के सिर्फ एक स्क्वायर इंच जितने एरिया में अरबों ट्रांजिस्टर बने होते हैं. जहां इन ट्रांजिस्टर के बीच की दूरी को नैनो मीटर्स में नापा जाता है जो कि एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है यानी कि Chip फेब्रिकेशन में गलती की गुंजाइश बिल्कुल नहीं होती है क्योंकि एक छोटी सी गलती भी अरबों डॉलर का नुकसान करवा सकती है.

Compitition – इसके अलावा इस industry में कंपटीशन भी बहुत ज्यादा टफ है. आने वाले समय में अमेरिकन गवर्मेंट 50 billion डॉलर, इंटेल कंपनी 20 billion डॉलर और TSMC अपनी नई फैब्रिकेशन फैसिलिटी पर 100 billion डॉलर की रकम खर्च करने वाली है और ये भी एक वजह है कि भारत में कोई भी व्यक्ति अपने अरबों रुपए एक ऐसे बिजनेस में नहीं लगाना चाहता जिसमें कॉम्पटीशन और रेस इतना ज्यादा हाई हो.

Skilled People – दोस्तों Chip फैब्रिकेशन टेक्नॉलजी की complicity की वजह से ही इसके manufacturing plant को चलाने के लिए वर्क फोर्स भी ऐसी ही चाहिए होती है जो न सिर्फ Highly Skilled हो बल्कि साथ ही आज के जमाने की लेटेस्ट टेक्नॉलजी को भी काफी अच्छी तरह से समझती हूं और जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि अमेरिका, साउथ कोरिया और जापान जैसे देशों की तुलना में हमारे यहां स्किल्ड लेबर यानी स्किल्ड वर्क फोर्स की बहुत ज्यादा कमी है. हालांकि अब ऐसा भी नहीं है कि भारत में टैलेंट की कोई कमी है लेकिन इस टैलेंट को सही ढंग से यूज करके देखिए. Skilled Work Force में हमारा देश अमेरिका और चीन जैसे देशों से काफी पीछे है. अब ऐसे में अगर किसी व्यक्ति के मन में भारत के अंदर Chip Manufacturing Plant लगाने का ख्याल भी आता है तो वह इस Skilled Work Force न होने की वजह से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाता है.

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Poor Infrastructure – किसी भी सेमीकंडक्टर Chip फैब्रिकेशन फैसिलिटी को बनाने की कुछ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिलेटेड रिक्वायरमेंट होती है. जैसे एक Chip manufacturing यूनिट को काम करने के लिए सिलिका के अलावा प्योर वाटर और पावर की 24*7 सप्लाई की जरूरत पड़ती है क्योंकि इन प्लांट्स में अगर थोड़े समय के लिए भी बिजली या फिर पानी की सप्लाई बंद हो जाती है तो इसकी वजह से कंपनी का बहुत ज्यादा नुकसान हो जाता है. अब भारत के अंदर बिजली और पानी की व्यवस्था कैसी है इसके बारे में हम सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं. साथ ही हमारे देश में पानी खारा होने की वजह से वाटर का जो प्योर फॉर्म होता है वो निकालने में भी काफी दिक्कतें होती हैं और ये भी एक अहम वजह है कि कोई भी विदेशी कंपनी अपना सेमीकंडक्टर Chip manufacturing plant भारत में नहीं लाना चाहती है.

Advance Technology – दोस्तों इस बात में कोई शक नहीं है कि टेक्नॉलजी के मामले में हमारा देश बहुत तेजी से उन्नति कर रहा है लेकिन एक सच यह भी है कि इस फील्ड में हम अभी भी चीन, जापान, साउथ कोरिया और अमेरिका जैसे देशों से काफी ज्यादा पीछे हैं. अब आप में से काफी लोग इस बात को जानते होंगे कि ऐपल के लेटेस्ट आईफोन iPhone13 में 5 नैनोमीटर पर बना हुआ Chipसेट यूज किया जाता है और इतना ही नहीं कहा तो यह भी जाता है कि इस साल ऐपल अपने लेटेस्ट आई पैड को 3 नैनोमीटर Chipसेट के साथ में लॉन्च करने वाला है. वही अगर भारत की बात की जाए तो हमारे देश में अभी भी 18 से 20 नैनोमीटर तक की ही टेक्नॉलजी उपलब्ध है यानि कि इस फील्ड में हम ऑलमोस्ट 4 से 5 जनरेशन पीछे चल रहे हैं और हमें लेटेस्ट टेक्नॉलजी तक पहुंचने में भी काफी ज्यादा टाइम लगने वाला है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बाकी की सारी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करके भारत में एक Chip manufacturing यूनिट सेटअप कर भी लेता है तो फिर इससे उसे कोई भी फायदा नहीं होगा क्योंकि न तो वह शुरुआत से ही 3 नैनोमीटर Chip बना पाएगा और ना ही कोई आज के जमाने में उससे 18 से 20 नैनोमीटर का Chip खरीदेगा, इसीलिए भारत में कोई भी व्यक्ति अपना पैसा इस हाई रिस्क industry में इनवेस्ट नहीं करना चाहता है.

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अब इन सभी फैक्टर्स को अगर देखा जाए तो फिलहाल भारत में Chip manufacturing शुरू कर पाना ही नामुमकिन नजर आता है लेकिन साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अभी कुछ समय पहले तक भारत में स्मार्टफोन मैन्युफैक्चर करने को भी इसी तरह से ही नामुमकिन समझा जाता था लेकिन आज हमारे देश में ओपो, वीवो, श्याओमी, सैमसंग और वन प्लस जैसी लगभग सभी लीडिंग ब्रैंड के स्मार्टफोन सक्सेसफुल मैन्युफैक्चरर असेंबल किए जा रहे हैं. हमारी गवर्नमेंट भी भारत में Chip manufacturing शुरू करवाने के लिए लगातार नए नए इंसेंटिव प्रोग्राम्स लेकर आ रही है. इस industry को बूस्ट देने के लिए भारत सरकार ने लगभग 76 हजार करोड़ रुपये का इनवेस्टमेंट भी किया है. अब अगर सरकार के हिसाब से सबकुछ प्लान के मुताबिक हुआ तो फिर आने वाले 6 से 10 सालों में हम भारत के अंदर semiconductor chips बनते हुए भी देख पाएंगे.

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